मंगलवार, 12 जून 2012

दुरलभ सिक्को की धरोहर -एक विज्ञान



सन 47में आजादी के बाद मेरठ के प्रथम मजिस्ट्रेट रहे डा0 निजाम की आठ पुत्रियो में से एक तनवीर जहॅंा अपने शौहर जहाॅगीर आलम के साथ एन.ए.एस.इन्टर कालिज में विज्ञान अध्यापक दीपक शर्मा से मिलने के लिए पहुची और अपने पास रखे दुर्लभ सिक्को दिखाया ।
दीपक शर्मा पीतल ,ताॅंबा,जस्ता,चाॅंदी और एल्युमिनियम के बने सिक्कों को देखकर महसुस किया कि यह एक धरोहर हैं। उनके पास पहले से ही कुछ सिकको का संग्रह है।
मेरठ के तीन बड़े रईस परिवारेा में से एक चुने वाले परिवार से ताल्लुक रखने वाली तनवीर जहाॅं खैरनगर की रहने वाली है उन्होने 557 ई0 में रामदरबार बने सिक्के ,जूनागढ़ की रियासत में चले तांबे की टिकड़ी, शाह आलम बादशाह के नाम से चला सिक्का, 1942 में जोराव गायकवाड़ का सरकारी सिक्का, 1907 में बना चाॅदी का एक पैसा,1919 में जार्ज पंचम के समय का जस्ते का बना 4 पेन्स,1934 में बना हाफ रूपीज का सिक्का,1959 में बना एक पैसा, के अलावा 1976,77,89 में बने पाकिस्तान के सिक्के,1972 में बना लिबर्टी .यूएस.ए, का एक डालर, 1968 में बना कन्या का सिक्का,1947 में बना 5फ्रेन्स,1966 का 6 पेन्स,और 1965 में बना इटली का डालर के साथ ही महात्मा गांधी के तीन बंन्दरो वाला लाकेट सहीत कुल 33 सिक्के दिखाये।
तनवीर जहाॅं और उनके शैहर जहागीर आलम ने ये सिक्के एक कांच के मजबुत बक्से में रखकर दीपक शर्मा को दान कर दिये ताकि सिक्को के इतिहास और विज्ञान को नयी पीढ़ी के बच्चे समझ सके।
इस अवसर पर दीपक शर्मा ने उनसे वादा लिया कि जबभी इसकी प्रदर्शनी लगेगी वे स्वयं उपस्थित जरूर रहें साथ ही ये भी आशा व्यक्त की शहर के जिन लोगो के पास ऐसे दुलर्भ सिक्के हैं वे अगर एक इक्टठा होकर इसकी प्रदर्शनी लगाये या फिर दान दे तो उनके नाम के साथ ही उन सभी का प्रदर्शन किया जायेगा। इस प्रकार मेरठ के पास अपना एक दुलर्भ संग्रहालय भी होगा।
डा0 डी0के पाल

1 टिप्पणी:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...